जन्माष्टमी के दिन किस तरह करें भगवान श्रीकृष्णा की पूजा, विस्तार से जानिये पूरी विधि ,जन्माष्टमी कैसे मनाया जाता है | श्री कृष्ण जन्म कथा |
जन्माष्टमी का त्योहार हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। जिसे भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाते है। जन्माष्टमी के पर्व को सभी लोग पूरी आस्था और श्रद्धा साथ मनाते है।
श्री कृष्ण जन्म कथा
भगवान श्री कृष्ण अपने नटखट हरकतों और बाल- क्रिड़ाओं कारण लोगों के दिलों में बसते है। आज से लगभग 5 हजार वर्ष पहले भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। मथुरा का एक राजा था जिसका नाम कंस था | उसकी एक बहन थी जिसका नाम देवकी था। कंस ने अपनी बहन देवकी का विवाह अपने एक मित्र से किया । जिनका नाम वासुदेव था।
कंस अपनी बहन को रथ में बैठाकर वासुदेव के साथ अपनी बहन को पहुंचाने वासुदेव के घर यानि देवकी के ससुराल जा रहा तभी भविष्यवाणी होती है कि अरे कंस देवकी का आठवां पूत्र ही तुम्हारा वध करेगा । इतना सुनते ही कंस रथ को मोड़ लेता है और मथुरा में वापस आकर देवकी और वासुदेव को बेड़ियों में जकड़कर कारागार में बंद कर देता है। कारागार में जब पुत्र जन्म लेते हैं तब कंस आता है और देवकी के पुत्रों को मार डालता है।
एक – एक कर कंस ने देवकी के सात पुत्रों को मार दिया था | अब आठवें की बारी थी। धरती को कैस जैसे पापी के पापों से मुक्त करने के लिए देवकी के आठ पुत्र के रूप में श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को गहन अंधेरी रात में हुआ । कृष्ण का जन्म होते ही जेल के सारे दरवाजे, खूल गये । देवकी वासुदेव के हाथों की बेड़िया भी खुल गई । वासुदेव ने अपने पुत्र की जान बचाने के लिए मौके का फायदा उठाया और कृष्ण को यमुना पार गोकुला में नन्द जी के यहाँ छोड़ आये। नन्द जी के यहां जन्मीपूत्री को उठाकर वे ले आये |
जब कंस को जानकारी मिली तब वह जेल पहले कि तरह आता है और पूत्री को पटकना चाहता है, वैसे ही कन्या आकाश में उड़ जाती है और भविष्यवाणी होती है – ” अरे कंस तु क्या मुझे मारेगा तुझे मारने वाला जन्म ले चुका है । कंस को किसी तरह कृष्ण के बारे में पता चल जाता है। कंस कृष्ण को मारने के लिए अनेक राक्षसों का सहारा लेता है किन्तु सभी राक्षस कृष्ण भगवान के हाथों मारे जाते है। अंत में कंस भी कृष्ण के हाथों मारा जाता है ।
कृष्ण अपने मामा कंस को मारकर अपने माता-पिता देवकी वासुदेव को कारागार से मुक्त कराकर मथुरा का राजा बनाते हैं। मथुरा में आप भी कृष्ण जन्माष्टमी का एक अलग ही महत्व है। यहां पर कई दिन पहले से ही तैयारी कि जाती हैं और जन्मोत्सव को बहुत हीं घुमधाम से मनाया जाता है।
जन्माष्टमी कैसे मनाया जाता है ?
पृथ्वी के पालन-हार भगवान विष्णु ने पृथ्वी को पापियों से मुक्त करने के लिए भादप्रद में कृष्णपक्ष अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी और वासुदेव के पुत्र के रूप में श्री कृष्ण ने मथुरा जन्म लिये ।
कलयुग में श्री कृष्ण शक्ति का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत बहुत ही फल -दायी है। इस व्रत को करने से भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से हर मनोकमना की पूर्ती होती है। इस दिन उपवास रखकर कृष्ण भक्ति के गीतों तथा तनमन से कान्हा के बालस्वरूप का पूजन करना चाहिए |
विधी का सर्वप्रथम हमें जन्माष्टमी के एक दिन पूर्व यानि सप्तमी के रात को हमे खाना नहीं खाना चाहिए और दिन में यानि सप्तमी को जो भी खाना खायें वो सात्वीक शुद्ध तथा लहसुन प्याज से मुक्त (नही दिया हुआ) होना चाहिए । अगले दिन जन्माष्टमी के दिन सुबह उठकर अपने मन्दिर और घर की साफ सफाई करके स्नान आदि करके साफ शुद्ध वस्त्र पहनना चाहिए। स्नान के बाद सुबह में मन्दिर की पूजा कर लेनी चाहिए ।
इस दिन की सम्पूर्ण दिनचर्य
मन्दिर की पूजा होने के बाद कान्हा को निंद से उठाकर बैठाना चाहिए । बैठाने के बाद ये बोले की कान्हा जी आपको जन्म दिन क ढेर सारी शुभकामनाएं | हे भगवन परम पिता परमेश्वर आपका आर्शिवाद हमारे उपर, हमारे परिवार के उपर हमेशा बना रहे।
कान्हा जी के या लड्डू गोपाल के बाल स्वरूप का ही हमें पूजो करनी चाहिए कान्हों जी की यानि लड्डू गोपाल को स्नान की तैयारी करनी चाहिए | लड्डू गोपाल के स्नान का इस दिन एक अलग ही विशेष महत्व है। इस दिन सुबह और रात बारह बजे दोनो ही समय हमें कान्हा जी को पंचामृत स्नान करानी चाहिए। दूध दही, घी , शक्कर, और तुलसी के फ्तों को मिलाकर पंचामृत बनानी चाहिए | साफ पात्र में बैठाकर पंचामृत से कान्हा जी को स्नान कराये इसके बाद पिला वस्त्र, मुकुट, माला, बांसुरी का श्रृंगार साफ पानी से कान्हा जी को नहलाकर करना चाहिए फिर पकवान, फल, माखन मिश्री से भोग लगाएं फिर धूप दीप दिखाएं, और आरती करके शंख बजाकर पूजा करें।
इसके बाद शाम की जन्माष्टमी की तैयारी शुरू कर दें। जहां पूजा करनी हो और अपने घर को बहुत ही सुंदर ढंग से सजाना चाहिए। अगर घर के मन्दिर में पूजा करना है तो मन्दिर को नहीं तो फिर चौकी पर भी लडडू गोपाल की पूजा चौकी को सजाकर कर सकते हैं।
आपको जो भी संभव हो बढ़िया – बढ़िया पकवान बनाये। बहुत से लोग मिठाइयां तथा छप्पन भोग भी लगाते है। अपने सामर्थ्य के अनुसार जितना हो सके बना लेनी चाहिए। शाम को कान्हा जी को फिर से भोग लगाकर आरती करनी चाहिए।
बहुत से लोग प्रत्येक साल लड्डू गोपाल का जन्म करवाते हैं । जन्म करवाने के लिए डंठल तथा पतामुक्त खीरा लेते हैं अगर बाल-गोपाल छोटा है तो खीरा काटकर उसमे रख देते है। अगर बाल-गोपाल बड़ा है तो खीरे के बगल में रखकर एक फूल भरी टोकरी में रखकर सूलायेंगे |
रात को बारह बजे जब, कान्हा का जन्म होगा उस समय घंटी , शंख ताली बजाकर कान्हा जी को उठायेंगे और बोलेंगे हाथी – घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की। इसके बाद कान्हा जी को उठाकर पंचामृत में स्नान करायेगे फिर साफ जल लेकर एक पात्र में कान्हों जी को साफ कर बड़े प्यार से साफ हल्का पिला वस्त्र पहनाते हैं ।
चन्दन का टीका लगाकर मधु, माखन, मिश्री का भोग लगायेगें फिर पंचोपचार कान्हा जी की पूजा करेगें।पूजा के बाद आरती करके कान्हा जी को झुले में बिठाकर झुला झुलाते हैं फिर हाथ जोड़कर क्षमा मांगेंगे कि हे कान्हा जी अगर मुझसे इस जन्मोत्सव में कोई गलती हो गई हो तो उसे क्षमा किजिएगा आपका आशीर्वाद हमेशा हमारे उपर तथा हमारे परिवार के ऊपर बना रहे ।
पूजा के बाद प्रसाद, वितरण करें | प्रसाद अपने घर परिवार के साथ-साथ अपने आसपास के लोगों को भी दे । प्रसाद वितरण के बाद खुद भी प्रसाद खा लेनी चाहिए। जन्माष्टमी के दिन व्रत करनेवाले को कलह क्लेश, झगड़ा नहीं करना चाहिए | दुराचारी लोगों से भी दूर ही रहना चाहिए तथा ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। रात को सोते समय लडडू गोपाल को सुनहरे पिताम्बर में सजाकर विश्राम करवानी चाहिए। इसी तरह हमें कान्हा की जन्माष्टमी धुम धाम से सच्चे मन से हर्ष और उल्लास साथ मनानी चाहिए।